Tuesday, July 29, 2014

Gonu Jha - 2

एक दिन गोनू झा बसुआ सं कहलथिन, "रौ बसुआ, तों बड्ड झूठ बजै छैं। तें बाज' काल किछु सोचल कर।"

एहि पर बसुआ कहलकनि, "मालिक औ, हम झूठ बजै छी से बुझबे नइ करै छिऐ।"

"अच्‍छा तं एकटा काज कर।" गोनू झा कहलथिन, "जत' हमरा झूठ बुझाएत ओत' हम ऊंहूं क' देबौ आ तों सम्‍हरि जइहें।"

"ठीक छई।"

ई संकेत दैत गोनू झा बसुआक संग पहुंचला एकटा भोज मे। दरबजा पर तमाम लोक बैसल रहैक। ओहि मे सं एक गोटे पुछलकनि, "एतेक देरी कत' भ' गेल?" गोनू झा के बजबा सं पहिनहि बसुआ बाजि उठल, "की कहू, अबैत छलहुं तं रस्‍ता मे एकटा पचास हाथक गहुमन देखलिऐ।"

"ऊंहूं", गोनू झा कएलथिन।

"नइ-नइ, गहुमन दूर रहै, लग मे गेलिऐ तं चालीस हाथ सं कम के नइ रहै।"

पुन: पुन: गोनू झा "ऊंहूं" कएलथिन।

"नइ-नइ, हमरा लग मे एकटा ढेपा रहय। टिका क' गहुमन कें मारलिऐ तं चारू नाल चित्त भ' गेलै। तखन पकड़ि क' नपलिऐ तं तीस हाथक भेलै।"

गोनू झा फेर ऊंहूं कएलथिन।

एहिपर बसुआ गोनू झा सं कहलकनि, "एह मालिक, अहूं हमरा बड़ तंग करै छी। आब तं हम गहुमन कें पकड़ि क' नापियो लेलिऐ। आब अहीं कहूं ने जे कत' घटबियौ?"

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